Thursday, May 28, 2009

घातक व्‍यर्थता

कभी अत्यधिक व्यस्त हो जाना फिर कभी अत्यधिक व्यर्थ हो जाना हमारे जीवन की तरंग बन चुके हैं. तरंग की आवृत्ति और आयाम परिवर्तित हो कर हर दोल काल में नयापन की अनुभूति कराती है. खाली रह कर कार्यशील रहना एक आदर्श है पर काम रहते हुए खाली रहना एक अलग चरमोत्कर्ष है.
पिछ्ले कुछ दिनो से दूसरे चरमोत्कर्ष पर गतिमान हूँ. ताश के पत्ते मुझे इसमें सहारा दे रही हैं. दो दिन में एक खेल सीखना मेरी लालायित प्रवृत्ति को प्रदर्शित कर रही है. दिन में भोजन के बाद सोना और रात में अंग्रज़ी टीवी सीरियल देख के सोना कुल मिलकर सोने में एक अपना स्तंभ स्थापित करता हुआ मैं शेष समय व्यर्थ गवाने का साधन ढूंढता रहा हूँ.
कोई मुझे प्रेरित करे कुई मुझे जगाए. मैं मानव से पत्थर बनने में अग्रसर हूँ.

2 comments:

  1. Sale kal main bol raha tha , thora kaam kar le bhai. Waise the post was interesting

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  2. Nar ho na niraash karo man ko, Kuch kaam karo kuch kaam karo!

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